10 साल में भारतीय भाषाओं पर सरकार ने कितना खर्च किया? Sanskrit पर सबसे ज्यादा

 पिछले 10 वर्षों में भारत सरकार ने भाषाओं पर कितना खर्च किया? संस्कृत पर सबसे अधिक, हिंदी और अन्य भाषाएं पीछे



नई दिल्ली, 26 जून 2025 — भारत सरकार द्वारा पिछले 10 वर्षों में विभिन्न भारतीय भाषाओं के संवर्धन, संरक्षण और प्रचार-प्रसार के लिए किया गया खर्च सार्वजनिक हुआ है, जिसमें सबसे अधिक राशि संस्कृत भाषा पर खर्च की गई है। आंकड़ों के अनुसार, संस्कृत पर ₹2,532 करोड़, जबकि उर्दू पर ₹838 करोड़ और हिंदी पर ₹426 करोड़ खर्च किए गए हैं।


भाषायी खर्च की यह रिपोर्ट सरकार के विभिन्न शैक्षणिक, सांस्कृतिक और संस्थागत कार्यक्रमों के तहत जारी की गई है। इसमें विश्वविद्यालयों, साहित्य अकादमियों, अनुवाद परियोजनाओं और भाषा विकास परिषदों के माध्यम से दी गई वित्तीय सहायता को शामिल किया गया है।


विशेषज्ञों के अनुसार संस्कृत पर इतना अधिक खर्च संस्कृत शिक्षण संस्थानों, शोध परियोजनाओं, डिजिटल संसाधनों और विद्यालयों में संस्कृत के प्रचार के कारण हुआ है। वहीं उर्दू को भी साहित्यिक अकादमियों, मदरसों और अनुवाद योजनाओं के जरिए बड़ा समर्थन मिला है।


हिंदी, जो भारत की राजभाषा है, पर अपेक्षाकृत कम ₹426 करोड़ खर्च किए गए हैं। जबकि तमिल पर ₹120 करोड़, सिंधी पर ₹54 करोड़, तेलुगु और कन्नड़ पर मात्र ₹12-12 करोड़ का ही व्यय हुआ है। शेष भाषाओं पर खर्च की गई राशि ₹15 करोड़ से भी कम रही है।


यह आंकड़े भाषाई विविधता और नीति निर्धारण के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, जहां यह साफ देखा जा सकता है कि सरकार किन भाषाओं को प्राथमिकता दे रही है। हालांकि, यह भी सवाल उठता है कि क्या सभी भाषाओं को समान रूप से प्रोत्साहन मिल रहा है या कुछ भाषाएं उपेक्षा का शिकार हो रही हैं।


भाषा विशेषज्ञों और क्षेत्रीय संगठनों ने इस असंतुलन पर चिंता जताई है और मांग की है कि सभी भारतीय भाषाओं के संरक्षण के लिए बराबर ध्यान और संसाधन दिए जाएं ताकि भाषाई विविधता बनी रहे और सभी भाषाएं फलें-फूलें।


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